Friday, February 14, 2014

मुक्तक : 479 - इश्क़ का नाम हो


इश्क़ का नाम हो सरनाम न बदनाम बने ।।
आबे ज़मज़म रहे , न मैक़दे का जाम बने ।।
सख़्त पाबन्दियाँ हों पेश इश्क़बाज़ी पे ,
सात पर्दों की बात इरादतन न आम बने ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

shashi purwar said...

waah bahut khoob sundar muqtak badhai

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! shashi purwar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...