Thursday, February 13, 2014

मुक्तक : 478 - मुक्त मन से बन सँवर कर


मुक्त मन से बन सँवर कर पूर्णतः वह धज्ज थी ।।
मुझसे सब इच्छाओं को सट मानने झट सज्ज थी ।।
केलि के उपरांत आभासित हुआ वह त्यागिनी ,
अप्रतिम सुंदर मनोहर भर थी पर निर्लज्ज थी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...