Friday, February 21, 2014

118 : ग़ज़ल - मुझे दोस्तों से मिला


मुझे दोस्तों से मिला न तू ,
मुझे दुश्मनी का ही शौक़ है ।।
मुझे प्यार से तू देख मत ,
मुझे बेरुख़ी का ही शौक़ है ।।1।।
मुझे इंतिहा में न बाँध तू ,
मुझे हद से पार तू जाने दे ,
मुझे मत ख़ुदा का दे वास्ता ,
मुझे काफ़िरी का ही शौक़ है ।।2।।
मुझे हर तरफ़ ही दिखे सियह ,
औ' सियाह बस ये मैं सच कहूँ ,
मुझे रौशनी का क़त्ई नहीं ,
मुझे तीरगी का ही शौक़ है ।।3।।
मुझे कह लो तुम बड़े शौक़ से ,
बड़ा मतलबी , बड़ा ख़ुदग़रज़ ,
करूँ क्या मगर जो कि ख़ुद से ही ,
मुझे आशिक़ी का ही शौक़ है ।।4।।
मेरी ज़िंदगी का जो हाल हो ,
मुझे फिर भी सर की क़सम मेरे ,
बड़ी मुश्किलें हैं यहाँ मगर ,
इसी ज़िंदगी का ही शौक़ है ।।5।।
ये भला किसे नहीं हो पता ,
कि शराब कैसी है चीज़ पर ,
वो करे भी क्या कि जिसे फ़क़त ,
बड़ा मैकशी का ही शौक़ है ?6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (22-02-2014) को "दुआओं का असर होता है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1531 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

prritiy----sneh said...

kavyatmak prastuti

shbuhkamnayen

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! prritiy----sneh जी !

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