Saturday, February 1, 2014

मुक्तक : 463 - हैं इस क़दर ग़लीज़


हैं इस क़दर ग़लीज़ कि गंगा न धो सके ॥
बोझिल हैं इतने धरती भी उनको न ढो सके ॥
वो ख़ुद भी आरज़ू-ए-क़ज़ा रखते है लेकिन ,
सब में तो माद्दा-ए-ख़ुदकुशी न हो सके ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...