Friday, January 31, 2014

मुक्तक : 462 - कर लूँ गुनाह मैं भी


कर लूँ गुनाह मैं भी अगर कुछ मज़ा मिले ।।
फिर उसमें भी हो लुत्फ़ जो मुझको सज़ा मिले ।।
यों ही मैं क्यों करूँ कोई क़ुसूर कि जिसमें ,
बेसाख्ता हों होश फ़ाख्ता क़ज़ा मिले ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...