Monday, January 20, 2014

मुक्तक : 451 - बेवजह वो मुझसे


बेसबब वो मुझसे बरहम हो रही है ॥
हर मसर्रत मेरी मातम हो रही है ॥
कर रही है जिस तरह वो बदसुलूकी,
रफ़्ता-रफ़्ता ज़िंदगी कम हो रही है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

अमित विश्वास said...

हीरालाल भाई आपकी कविता दिल को छूने वाली होती है, मैं आपका पाठक हूँ। ऐसे ही मर्मस्‍पर्शी कविताएं रचते रहिए आप....आपको असीम शुभकामनाएं....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अमित विश्वास जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...