प्यार उनका मेरा और गहरा हुआ ।।
और साकित समंदर सा ठहरा हुआ ।।1।।
इस तरह कुछ हुए हादसे दोस्तों ,
उनकी होली तो अपना दशहरा हुआ ।।2।।
मुझको सदमा हुआ मेरे गिरने पे जब ,
दोस्त का लोहा चेहरा सुनहरा हुआ ।।3।।
उसके ही साथ सब साज-सुर उठ गये ,
अब यहाँ रात-दिन चुप का लहरा हुआ ।।4।।
"मुझसे हरगिज़ नहीं प्यार करते हैं " वो ,
यूँ वो चीखे कि मैं सुन के बहरा हुआ ।।5।।
कब तक उनको मनाऊँ कि मटिआला अब ,
उनका हर नाज़-नख़रा सुनहरा हुआ ।।6।।
अपनी हर बात पहले बताते थे वो ,
अब तो पेट उनका खाई से गहरा हुआ ।।7।।
अब वो डरते हैं दीपावली में बहुत ,
उनका बच्चा धमाकों से बहरा हुआ ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (07-01-2014) को पाक चाहता आप की, सेंटर में सरकार; चर्चा मंच 1485 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह...बहुत बढ़िया रचना......आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
धन्यवाद ! मयंक जी !
धन्यवाद ! Prasanna Badan Chaturvedi जी !
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