Thursday, January 30, 2014

मुक्तक : 461 - इक भी बेदिल से नहीं


इक भी बेदिल से नहीं सब ही रज़ा कर लिखिये ॥
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ समझ-सोच-बजा कर लिखिये ॥
डायरी ख़ुद की कभी आम भी हो सकती है ,
दिल के जज़्बात शायरी में सजा कर लिखिये ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...