Saturday, January 18, 2014

मुक्तक : 449 - वो ज़माने गये जो थे


वो ज़माने गये जो थे किसी ज़माने में ॥
लोग महबूब को थकते न थे मनाने में ॥
सख़्त जोखिम भरी है आज रूठने की अदा ,
यार लग जाएँ नये यार झट बनाने में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बिलकुल सही कहा आपने वो ज़माने गए

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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