वो ज़माने गये जो थे
किसी ज़माने में ॥
लोग महबूब को थकते
न थे मनाने में ॥
सख़्त जोखिम भरी है
आज रूठने की अदा ,
यार लग जाएँ नये यार
झट बनाने में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
बिलकुल सही कहा आपने वो ज़माने गए
धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !
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