Tuesday, January 28, 2014

मुक्तक : 459 - आबे ज़मज़म समझ के


आबे ज़मज़म समझ के जह्र पिये जाता हूँ ।।
बस ख़ुदा तेरी ही दम पे मैं जिये जाता हूँ ।।
सख़्त से सख़्त है दुश्वार ज़िंदगी मेरी ,
नाम रट-रट के तेरा सह्ल किये जाता हूँ ।।
( सह्ल = सरल , सुगम , आसान )

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...