Tuesday, January 14, 2014

मुक्तक : 443 - दो घूँट में ही वो


दो घूँट में ही वो नशे से रह भटक गये ॥
दो मार के डग बीच में अटक सटक गये ॥
मंजिल पे भी हमें मिली न दौड़ से फुर्सत ,
टाले टले न होश ख़ुम के ख़ुम गटक गये ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...