Wednesday, January 1, 2014

मुक्तक : 434 - दिल से निकाल दूँगा


दिल से निकाल दूँगा दर्द-ओ-रंज अगर तमाम ,
कैसे करूँगा ग़म की शायरी का ख़ुश हो काम ?
अश्क़ों को ही तो मैं बदलता हूँ अशआर में ,
रखता हूँ जितनी आँख ख़ुश्क उतने तर क़लाम ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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गये साल को है प्रणाम!
है नये साल का अभिनन्दन।।
लाया हूँ स्वागत करने को
थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।।
है नये साल का अभिनन्दन।।...
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नवल वर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...