Tuesday, January 14, 2014

112 : ग़ज़ल - झुकने नहीं मैं टूटने




झुकने नहीं मैं टूटने तैयार हूँ जनाब ।।
मग़रूर तो नहीं हूँ ; हाँ ! ख़ुद्दार हूँ जनाब ।।1।।
मंजिल पे भी तो आ के न मेरा सफ़र हो ख़त्म ,
चलने के सख़्त शौक़ से नाचार हूँ जनाब ।।2।।
मत देखो नूर चेहरे का मेरे न हँसते होंठ ,
रंजूर हूँ , सियाह हूँ , बीमार हूँ जनाब ।।3।।
रहता हूँ इस तरह से कि कब मानते हैं लोग ,
इक अर्से से मैं फ़ालतू बेकार हूँ जनाब ।।4।।
इक-इक अदा पे आपकी पूछो न कितनी बार ?
सच इक दफ़ा फ़िदा न मैं सौ बार हूँ जनाब ।।5।।
कमज़ोरियाँ बदन की मुझे लड़खड़ा गिराएँ ,
लोगों को लग रहा कि मैं मैख़्वार हूँ जनाब ।।6।।
क्यों होते मुझको रोज़ गिराने के इंतिज़ाम ,
दिखता खड़ा हूँ अस्ल में मिस्मार हूँ जनाब ।।7।।
खोटा समझ कभी भी न पाओगे मुझको फेंक ,
रुपया नहीं हूँ सोन की दीनार हूँ जनाब ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

8 comments:

अजय कुमार झा said...

पढ कर बस यही निकला मन से कि
आपकी लेखनी को पढने का तलबगार हूं जनाब

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! अजय कुमार झा जी !

Unknown said...

bahut khoooooob sir ji....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! sk dubey जी !

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर !
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कालीपद प्रसाद जी !

Unknown said...

बहुत ही सुंदर और शानदार ...............................

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !

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