Sunday, January 19, 2014

मुक्तक : 450 - ना जाने क्यों ख़ामोशी भी


ना जाने क्यों ख़ामोशी भी शोर-शराबा लगती है ?
मरहम-पट्टी-ख़िदमतगारी ख़ून-ख़राबा लगती है ॥
ख़ुद का जंगल उनको शाही-बाग़ से बढ़कर लगता है ,
मेरी बगिया नागफणी का सह्रा-गाबा लगती है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...