Thursday, January 2, 2014

मुक्तक : 435 - मैं रह गया था जिसके


मैं रह गया था जिसके अतल हृदय में धँस के ,
सजल नयन लिए निहारती थी हँस–हँस के ॥
हाव सब चुम्बकीय , भाव इंद्रजाल महा ,
उसकी कमनीयता में कौन उबरता फँस के ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

6 comments:

Unknown said...

लाजवाब.. क्या बात है..

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! mahesh soni जी !

Unknown said...

बहुत खूब

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कालीपद प्रसाद जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! VINOD SHILLA जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...