मैं रह गया था
जिसके अतल हृदय में धँस के ,
सजल नयन लिए
निहारती थी हँस–हँस के ॥
हाव सब चुम्बकीय ,
भाव इंद्रजाल महा ,
उसकी कमनीयता में
कौन उबरता फँस के ?
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
6 comments:
लाजवाब.. क्या बात है..
धन्यवाद ! mahesh soni जी !
बहुत खूब
धन्यवाद ! कालीपद प्रसाद जी !
धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
धन्यवाद ! VINOD SHILLA जी !
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