Wednesday, January 8, 2014

मुक्तक : 438 - कोई कितना भी हो ग़लीज़


कोई कितना भी हो ग़लीज़ या कि पाक यहाँ ॥
सबको होना है लेक एक रोज़ ख़ाक यहाँ ॥
ज़िंदगी लाख हो लबरेज़ दर्द-ओ-ग़म से मगर ,
किसको लगती नहीं है मौत खौफ़नाक यहाँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...