कोई कितना भी हो ग़लीज़
या कि पाक यहाँ ॥
सबको होना है लेक एक
रोज़ ख़ाक यहाँ ॥
ज़िंदगी लाख हो लबरेज़
दर्द-ओ-ग़म से मगर ,
किसको लगती नहीं है
मौत खौफ़नाक यहाँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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