Thursday, January 23, 2014

मुक्तक : 455 - कैसी-कैसी मीठी-मीठी


कैसी-कैसी मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी करती थी ॥
क्या दिन-दिन क्या रात-रात भर ढेरों-सारी करती थी ॥
मेरी तरफ़ मुखातिब होना तक न गवारा आज उसे ,
जो मुझसे जज़्बात की बातें भारी-भारी करती थी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...