Thursday, January 23, 2014

मुक्तक : 454 - बेशक़ दिखने में मैं नाजुक


बेशक़ दिखने में मैं नाजुक-चिकनी-गोरी-चिट्टी हूँ ॥
लेकिन ये हरगिज़ मत समझो नर्म-भुरभुरी-मिट्टी हूँ ॥
चाहो तो दिन-रात देखलो मुझपे करके बारिश तुम ,
मैं न गलूँगी क़सम तुम्हारी ! अंदर से मैं गिट्टी हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

Unknown said...

WAH ! KYAA BAAT HAI !!

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...