Wednesday, January 29, 2014

115 : ग़ज़ल - आज तो कुछ भी नहींं


आज तो कुछ भी नहीं मुझसे छिपाया जाएगा ।।
राज़-ए-दिल का बोझ अब ना और उठाया जाएगा ।।1।।
मैं तमन्नाई नहीं राहें मेरी फूलों की हों ,
हाँ बिना जूतों के काँटों पे न जाया जाएगा ।।2।।
हाथ भी जोड़े न वो जो सच ख़ुदा के सामने ,
उस से क्या इंसाँ के दर पे सर झुकाया जाएगा ?3।।
ख़ूबरू ना नौजवाँ , ना नामचीं , न रईस मैं ,
उस हसीं का किस बिना पर दिल चुराया जाएगा ?4।।
बस यूँ ही करले यकीं दिल में तेरी तस्वीर है ,
चीर कर दिल को भला कैसे दिखाया जाएगा ?5।।
मुल्क़ से बेरोज़गारी में ये हिज़रत के ख़याल ,
प्यार यूँ कब तक वतन से रह निभाया जाएगा ?6।।
भैंस से लेने चले हो दाद तुम भी बीन की ,
स्वाद क्या अदरख का बंदर से बताया जाएगा ?7।।
मर चुका था वो तो अंदर से बहुत पहले मगर ,
आज तन से भी गया दम तो जलाया जाएगा ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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