Saturday, January 4, 2014

मुक्तक : 436 : दूर फ़ौरन ही ये तनहाई


दूर फ़ौरन ही ये तनहाई की ग़रीबी हो ॥
और सिर्फ़ एक वो ही वो मेरी क़रीबी हो ॥
हो नशे में मेरे , मुझ पर फ़िदा , मुझ पर आशिक़
या ख़ुदा करदे क़रामात ख़ुशनसीबी हो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...