Thursday, January 9, 2014

मुक्तक : 439 - रोती-सिसकती क़हक़हों



रोती-सिसकती क़हक़हों भरी हँसी लगे ॥
बूढ़ी मरी-मरी जवान ज़िंदगी लगे ॥
इक वहम दिल-दिमाग़ पे तारी है आजकल ,
बिलकुल लटकते साँप सी रस्सी पड़ी लगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...