Sunday, January 12, 2014

मुक्तक : 442 - न मेरा अस्ल मक़्सद हैं


न मेरा अस्ल मक़्सद हैंं वो ना मेरी वो हैंं मंज़िल ।।
न मैं हूँ डूबती कश्ती न वे ही नाख़ुदा-साहिल ।।
नहीं होता मुझे बर्दाश्त हरगिज़ भी गुरूर उनका ,
लिहाज़ा उनको करना है मुझे हर हाल में हासिल ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...