Sunday, January 26, 2014

मुक्तक : 458 - बहुत सी पास में खुशियाँ


बहुत सी पास में खुशियाँ हों या इफ़्रात में हों ग़म ।।
कि रेगिस्तान हो दिल में या क़ामिल आब-ए-ज़मज़म ।।
है ज़ाती तज़्रुबा मेरा ये ज़ाती सोच मेरी ,
कि शायर की क़लम में तब ही आ पाता है दम-ख़म ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...