Thursday, January 16, 2014

मुक्तक : 446 - चाहे वो गंगा का हो


चाहे वो गंगा का हो सिंध या चनाब का ।।
इस वक़्त वो प्यासा है तो दरिया के आब का ।।
बेशक़ तड़प तड़प के मर भी जाएगा मगर ,
प्याला नहीं लगाएगा मुँह से शराब का ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...