Sunday, January 12, 2014

मुक्तक : 441 - तवील बेशक़ न लेक कुछ तो


तवील बेशक़ न लेक कुछ तो ज़रा-ज़रा , कम ही कम सुनाने ॥
किये जो मुझ पर जहाँ ने तारी वो सारे गिन-गिन सितम सुनाने ॥
हर एक दर्दआशना जो सुन-सुन न अश्क़ ढा दे अगर तो कहना ,
बुला कभी मुझको अपनी महफ़िल में मेरी रुदाद-ए-ग़म सुनाने ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...