Tuesday, January 14, 2014

मुक्तक : 444 - जो कुछ बजा न हो


जो कुछ बजा न हो वो भी वाज़िब है बजा है ॥
वो हों तो दर्द लुत्फ़ है ग़म एक मज़ा है ॥
उनके बग़ैर क़ैद है बख़ुदा रिहाई भी ,
इनआम भी ज़ुर्माना है इक सख़्त सज़ा है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजेन्द्र कुमार जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...