Friday, January 10, 2014

मुक्तक :440 - कहाँ अब रात होगी


कहाँ अब रात होगी और कहाँ अपनी सहर होगी ?
बग़ैर उनके भटकते ज़िंदगी शायद बसर होगी !
रहेंगे जह्न-ओ-दिल में जब वही हर वक़्त छाये तो ,
हमें कब अपने जीने और मरने की ख़बर होगी ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...