Friday, February 7, 2014

मुक्तक : 469 - क्या सोच के ये गबरू


क्या सोच के ये गबरू-गबरू नौजवाँ करें ?
होशियार से होशियार भी नादानियाँ करें ॥
दोनों तरफ़ लगी हो आग कब ये देखते ?
इकतरफ़ा इश्क़ में भी क़ुर्बाँ अपनी जाँ करें ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...