Saturday, February 8, 2014

मुक्तक : 471 - ज़िंदगी को इस क़दर


ज़िंदगी को इस क़दर सर्दी हुई है ,
फ़ौर लाज़िम मौत की गर्मी हुई है ॥
थक गई चल-चल,खड़े रह-रह के अब बस ,
बैठने दरकार झट कुर्सी हुई है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...