Sunday, March 2, 2014

120 : ग़ज़ल - दिल जब भी मोहब्बत में



दिल जब भी मोहब्बत में गिरिफ़्तार हुआ है ।।
नुक़्सान कोई नाँ कोई हर बार हुआ है ।।1।।
कहते तो वो हर बार सही ही हैंं मगर क्या ,
कहने ही अकेले से भी उपकार हुआ है ?2।।
आसान तरीक़े से भला सच का ख़ुलासा ,
करने को कोई आज भी तैयार हुआ है ?3।।
क्यों इतने से ग़म से हूँ मैं बेहाल ? तो सुन लो ,
दिल पहली दफ़्आ रंज से दो-चार हुआ है ।।4।।
इंसान से , मज्बूर न होता न मँगाता ,
इस वक़्त ख़ुदा मुझको जो बेकार हुआ है ।।5।।
दर्या में पटकने को करे कौन है नेकी ?
ये सिर्फ़ फ़सानों में चमत्कार हुआ है ।।6।।
" सच क्या है ?" इसी की तो तलाशी में भटकता ,
पढ़-पढ़ के ही वो और भी बेकार हुआ है ।।7।।
इक ख़ुद से ग़रज़ मैं ही अकेला न रखूँ याँ ,
मतलब का ज़माना ही परस्तार हुआ है ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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