Sunday, March 9, 2014

मुक्तक : 500 - बेशक़ ही ख़्वाब


बेशक़ ही ख़्वाब देखने पे रोक नहीं है ॥
अर्मान सजाने पे टुक भी टोक नहीं है ॥
इन बुलबुलों को फूँक से दुनिया की बचाना ,
वर्ना जगत में इससे विकट शोक नहीं है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...