Monday, March 17, 2014

121( ¡¡ ) : ग़ज़ल - मत और किसी के खेल



मत और किसी के खेल संग में तो मानूँ होली !!
तू मुझको भिगो मैं तुझको रंग में तो मानूँ होली !!
मैं तुझको भरे बैठा हूँ ठूँस कब से रीते मन में ,
तू मुझको धरे जब हिय के अंग में तो मानूँ होली !!
पाने को तुझे मैंं राह कोई भी अपनाऊँ सजनी ,
सब वैध रहें यदि प्रेम-जंग में तो मानूँ होली !!
लिख लाख कई तू लेख मुझको क्या किन्तु मुझे लिख दे ,
यदि प्रेम भरा इक पत्र उमंग में तो मानूँ होली !!
पीते हैं सदा हाथों से तेरे पर प्यार भी दे अपना ,
यदि घोंट-मसल कर आज भंग में तो मानूँ होली !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

8 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहतरीन ग़ज़ल...होली की शुभकामनाएं
सादर
अनु

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अनु जी !

Unknown said...

बहुत ही शानदार..

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! mahesh soni जी !

mukeshjoshi said...

अतिसुन्दर हे होली की शुभ कामनाए''

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! mukeshjoshi जी !

पूनम रामकरण प्रजापति said...

very---good---ji

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ramkaran Prajapati जी !

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