Sunday, March 30, 2014

126 : ग़ज़ल - पहले सी हममें तुममें


पहले सी हममें तुममें मोहब्बत न अब रही ।।
इक दूसरे की दिल में वो इज्ज़त न अब रही ।।1।।
दीनार में औ' गिन्नी में तुलते थे पहले हम ,
धेले की कौड़ी भर की भी क़ीमत न अब रही ।।2।।
इक दूजे के बग़ैर न रहते थे हम कभी ,
इक दूसरे की कुछ भी ज़रूरत न अब रही ।।3।।
मुद्दत से सो रहे हैं छुरी , पत्थरों पे हम ,
मखमल के बिस्तरों की वो आदत न अब रही ।।4।।
हमने मुसीबतों का किया इतना सामना ,
आफ़त भी कोई हमको सच आफ़त न अब रही ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : हंसती है चांदनी
नई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजीव कुमार झा जी !

Unknown said...

बहुत ही सुंदर और शानदार है आपकी ये रचना ...........................

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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