पहले सी हममें तुममें मोहब्बत
न अब रही ।।
इक दूसरे की दिल में वो इज्ज़त
न अब रही ।।1।।
दीनार में औ' गिन्नी में तुलते थे पहले हम ,
धेले की कौड़ी भर की भी क़ीमत न
अब रही ।।2।।
इक दूजे के बग़ैर न रहते थे हम कभी ,
इक दूसरे की कुछ भी ज़रूरत न अब रही ।।3।।
मुद्दत से सो रहे हैं छुरी , पत्थरों पे हम ,
मखमल के बिस्तरों की वो आदत न
अब रही ।।4।।
हमने मुसीबतों का किया इतना सामना ,
आफ़त भी कोई हमको सच आफ़त न अब रही ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : हंसती है चांदनी
नई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
धन्यवाद ! राजीव कुमार झा जी !
बहुत ही सुंदर और शानदार है आपकी ये रचना ...........................
धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !
Post a Comment