Monday, March 31, 2014

देवी गीत ( 2 ) तेरे दर्शन को आना चाहूँ



तेरे दर्शन को आना चाहूँ पर आऊँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
हाथों में शंख चक्र साजै मुखड़े पर तेज रहे पावन ,
सुनता बस आया हूँ तेरा है रूप बड़ा ही मनभावन ,
अब नयनहीन दर्शन तेरे कर पाऊँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
सज्जन दुर्जन कोई भी हो जो भी जाये तेरे द्वारे ,
हर ले झट सबके कष्ट करे कल्याण सभी का तू तारे ,
दरबार में तेरे पहुँचे बिन तर पाउँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
है शक्ति तेरी भक्ति में बड़ी ध्यानू की लाज धरी तूने ,
गदगद हो वीर शिवाजी को अविजित तलवार वरी तूने ,
बिन तुझको प्रसन्न किये मन के वर पाउँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

आशीष अवस्थी said...

बहुत लाजवाब रचना डॉ० सर , धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर
जय माता दी

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! आशीष भाई जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! कविता रावत जी !

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