बला की तू तो ख़ूबसूरत है II
ख़ुदा क़सम ख़ुदा की मूरत है II
बला की
तू.........................
ख़ुदा क़सम.......................
ज़मीं के चाँद से ऊपर का चाँद
शर्माए ,
तू शाम आई सरेबाम चाँद क्यों
आए ?
गुलाब ख़ुश था की वैसा ज़मीं पे
फूल नहीं ,
तेरे हसीन रू को देख रो पड़ा
हाए II
बला की तू.........................
ख़ुदा क़सम.......................
रहे न और किसी का तेरा ही हो
जाए II
जो करले दीद तेरा तो उसी में
खो जाए II
तेरी निगाहे करम का हो कौन
बेपर्वा ?
है कौन जो तेरे इनकार से न रो
जाए ?
बला की
तू.........................
ख़ुदा क़सम.......................
है बेमिसाल तुझसा दूसरा जमाल
नहीं II
असर से तेरे बड़ा दूसरा कमाल नहीं
II
है तुझमें शर्म जो छुईमुई में
भी वो क्या होगी ?
हया की तुझसे जहाँ में बड़ी
मिसाल नहीं II
बला की
तू.........................
ख़ुदा
क़सम.......................
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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