Sunday, March 23, 2014

मुक्तक : 512 - शक्लों से हू-ब-हू


शक्लों से हू-ब-हू तो कोई ज़रा जुदा है ।।
लेकिन ख़ुदा , ख़ुदा है , ख़ास-ओ-अलाहदा है ।।
ये सोचता हूँ ज्यों है मेरा क्या यूँ ही सबके ,
होता ख़ुदा का भी क्या अपना कोई ख़ुदा है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...