Friday, March 21, 2014

मुक्तक : 511 - जैसे कि दे के दीद



जैसे कि दे के दीद यकायक क़रीब से ,
जन्नत मेरी इन आँखों को बख़्शी नसीब से ;
वैसे ही नज्र कर दो अपनी दौलते दिल भी ,
बन जाऊँ मैं अमीर प्यार का ग़रीब से ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...