Tuesday, March 4, 2014

मुक्तक : 495 - ग़म-ए-दिल का दिल


ग़म-ए-दिल का दिल ही दिल में र्द सहने को ॥
हम बहुत मज़्बूर थे चुपचाप रहने को ॥
लोग सब सुनने हमें तैयार बैठे थे ,
पास में अपने न थे अल्फ़ाज़ कहने को ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...