मुँह बनाकर मत उन्हें कुछ मुस्कुराकर देखना ॥
अपने रूठों को किसी दिन यूँ मनाकर देखना ॥
हमने माना हाँ ! तेरे हम्माम का सानी नहीं ,
फिर भी इक दिन खुल के बारिश में नहाकर देखना ॥
तुझे बेज़ायक़ा लगता है उसको इक दफ़ा ,
सिर्फ़ तगड़ी भूख लगने पर तू खाकर देखना ॥
गोश्त हड्डीदार तू हलुए सरीखा चाब ले ,
एक रूखी-सूखी रोटी भी चबाकर देखना ॥
घंटों जिम में वेटलिफ्टिंग रोज़ तू करता कभी ,
यों ही इक दिन कुनबे का ज़िम्मा उठाकर देखना ॥
टूट पड़ते फाक़ाकश को देख जूठन पे न हँस ,
इक ही दिन तू निर्जला चुपके बिताकर देखना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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