Monday, March 17, 2014

122 : ग़ज़ल - मुँह बनाकर मत उन्हें कुछ


    
    मुँह बनाकर मत उन्हें कुछ मुस्कुराकर देखना ॥ 
    अपने रूठों को किसी दिन यूँ मनाकर देखना ॥ 
    हमने माना हाँ ! तेरे हम्माम का सानी नहीं ,
    फिर भी इक दिन खुल के बारिश में नहाकर देखना ॥ 
     तुझे बेज़ायक़ा लगता है उसको इक दफ़ा ,
    सिर्फ़ तगड़ी भूख लगने पर तू खाकर देखना ॥ 
    गोश्त हड्डीदार तू हलुए सरीखा चाब ले ,
    एक रूखी-सूखी रोटी भी चबाकर देखना ॥ 
    घंटों जिम में वेटलिफ्टिंग रोज़ तू करता कभी ,
  यों ही इक दिन कुनबे का ज़िम्मा उठाकर देखना ॥ 
    टूट पड़ते फाक़ाकश को देख जूठन पे न हँस ,
    इक ही दिन तू निर्जला चुपके बिताकर देखना ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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