ले साथ में अपने वो सभी तेज़ हवाएँ ।।
सूरज के हैं स्वजन जो चिराग़ों को बुझाएँ ।।1।।
ख़्वाबीदा जो इंसान हो उठ जाए वो ख़ुद ही ,
खोल आँखें जो सोया है उसे कैसे जगाएँ ?2।।
मंदिर का हर इक शख़्स कलश बनने खड़ा है ,
बुनियाद के पत्थर के लिए किसको मनाएँ ?3।।
कितने भी किसी प्यारे की हो लाश तो घर में ,
रखते न उसे दफ़्न करें सब या जलाएँ ।।4।।
मिलती हो भले मुफ़्त कहीं क़ीमती दारू ,
समझें जो हराम इसको कभी मुँह न लगाएँ ।।5।।
ख़ूब आज़माया अपना असर लाके रही हैं ,
अपनों की बद्दुआएँ औ’ ग़ैरों की दुआएँ ।।6।।
माँ-बाप को भी सिज्दा वो करने झिझकते ,
मतलब के लिए ग़ैरों के तलवे भी दबाएँ ।।7।।
मुझको न गुनहगारों की आज़ादियाँ अखरें ,
दिल रोता है जब झेलते मासूम सज़ाएँ ।।8।।
बेकार हैं सूरज को मशालों के दिखावे ,
अच्छा हो अंधेरों में कहीं दीप जलाएँ ।।9।।
सुनते हैं ख़ुदा का तो वज़ूद आप न मानें ,
फिर किससे किया करते हैं चुपचाप दुआएँ ?10।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
धन्यवाद ! मयंक जी !
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