Tuesday, March 11, 2014

मुक्तक : 502 - ऐ झुरमुट एक बार




ऐ झुरमुट एक बार पेड़-झाड़ से तू मिल ॥
ओ ऊँट इक दफ़ा किसी पहाड़ से तू मिल ॥
हैं इस जहाँ में लोग इक से बढ़के इक कई ,
खिड़की कभी तो दुर्ग के किवाड़ से तू मिल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-03-2014) को मिली-भगत मीडिया की, बगुला-भगत प्रसन्न : चर्चा मंच-1549 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Lata Saxena said...

सच बयां करता मुक्तक |

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Asha Saxena जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...