Thursday, March 13, 2014

मुक्तक : 504 - पाँव की तह की ज़मीं


पाँव की तह की ज़मीं और न सर की छत या छाँव ।।
मुल्क़ लगते हैं नहीं लगते सूबे , शहर या गाँव ।।
इसका चस्का है ख़तरनाक कोई खेले तो , तो 
छोटे-मोटे नहीं चलते हैं सियासत में दाँव ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...