Sunday, March 9, 2014

मुक्तक : 501 - फिर वही या दूसरी


फिर वही या दूसरी तक्लीफ़ मिलती है ।।
आज देखें कौन सी तक्लीफ़ मिलती है ?
आते तो हैं लुत्फ़ की उम्मीद से हम याँ ,
लेकिन अक्सर इक नई तक्लीफ़ मिलती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...