Wednesday, March 19, 2014

मुक्तक : 509 - तुझसे तो शर्तिया थी


तुझसे तो थी शर्तिया , उम्मीदे वफ़ा मगर II
औरों से भी बढ़के तू , निकला बेवफ़ा मगर II
ग़ैरों से फ़रेब तू , करता ही रहा मगर ,
अपनों से भी तू न कर , पाया रे वफ़ा मगर II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

Very nice................

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Yoginder Singh जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...