Thursday, March 13, 2014

मुक्तक : 505 - चीज़ों की तरह रखते हैं


( चित्र google search से साभार )
चीज़ों की तरह रखते हैं सब मुझको उठाकर ॥
बिन हाथ-पैर कैसे कहीं जाऊँ मैं आकर ?
इतना ग़रीब इतना-इतना-इतना ग़रीब हूँ ,
देते हैं भिखारी भी भीख मुझको बुलाकर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...