ग़म-ए-दिल का दिल ही
दिल में दर्द सहने को ॥
हम बहुत मज़्बूर थे चुपचाप
रहने को ॥
लोग सब सुनने हमें तैयार बैठे थे ,
पास में अपने न थे अल्फ़ाज़ कहने को ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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2 comments:
बहुत ख़ूबसूरत...
धन्यवाद 🙏
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