जैसे कि दे के दीद यकायक क़रीब से ,
जन्नत मेरी इन आँखों को बख़्शी नसीब से ;
वैसे ही नज्र कर दो अपनी दौलते दिल भी ,
बन जाऊँ मैं अमीर प्यार का ग़रीब से ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
4 comments:
बहुत सुंदर.
धन्यवाद ! राजीव कुमार झा जी !
वाह .....
धन्यवाद ! Tushar Raj Rastogi जी !
Post a Comment