तेरे दर्शन को आना चाहूँ पर आऊँगा
मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा
मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
हाथों में शंख चक्र साजै मुखड़े
पर तेज रहे पावन ,
सुनता बस आया हूँ तेरा है रूप
बड़ा ही मनभावन ,
अब नयनहीन दर्शन तेरे कर पाऊँगा
मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा
मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
सज्जन दुर्जन कोई भी हो जो भी
जाये तेरे द्वारे ,
हर ले झट सबके कष्ट करे कल्याण
सभी का तू तारे ,
दरबार में तेरे पहुँचे बिन तर
पाउँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा
मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
है शक्ति तेरी भक्ति में बड़ी ध्यानू
की लाज धरी तूने ,
गदगद हो वीर शिवाजी को अविजित
तलवार वरी तूने ,
बिन तुझको प्रसन्न किये मन के
वर पाउँगा मैं कैसे माँ ?
पग जाते रहे दोनों मेरे चल पाऊँगा
मैं कैसे माँ ?
तेरे दर्शन को आना चाहूँ.................................?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
बहुत लाजवाब रचना डॉ० सर , धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
बहुत सुन्दर
जय माता दी
धन्यवाद ! आशीष भाई जी !
धन्यवाद ! कविता रावत जी !
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