Tuesday, November 12, 2013

क्या '' नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा............................


फ़िर चुनाव का मौसम आया आ पहुँचे घर-घर नेता ॥
भीख वोट की झुक-झुक माँगें जाकर के दर-दर नेता ॥
ये गूलर के फूल फ़क़त मिलते हैं मतलब की ख़ातिर ,
फ़िर मशाल लेकर भी ढूँढो आते नहीं नज़र नेता ॥
एक वोट की ख़ातिर सौ-सौ झूठ बोलते फिरते हैं ,
कितने ही क़स्मे-वादे करते हैं सिर छूकर नेता ॥
बात जीत की छोड़ो बस मतदान ही तो हो जाने दो ,
जिनके पैर पखारेंगे कल मारेंगे ठोकर नेता ॥
है वास्ता  किसे जनहित से किसे देश की चिंता है ,
धन और नाम कमाएँ कैसे करते यही फ़िकर नेता ॥
संस्कार आदत स्वभाव कैसे वर्षों के छूटेंगे ,
येन-केन बन जाएँ डाकू , क़ातिल भी रहबर-नेता ॥
क्या तब भी  ''नोटा " का बटन दबाना ठीक रहेगा जब ,
लंपट ,चालू ,चोर ,उचक्के ,ठग हों ज़्यादातर नेता ?

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (13-11-2013) चर्चा मंच 1428 : केवल क्रीडा के लिए, मत करिए आखेट "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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